Sunday, June 27, 2010

मेरा भारत महान







आज इस देश को सब से ज़्यादा कौन देता है मान,
एक ट्रक ड्राइवर बोला, मैं श्रीमान,
कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक,
देश के हर कोने में पहुँचाता हूँ सामान,
गर्मी हो या सर्दी, या बरसाती तूफान,
मैं रुकता नहीं हूँ श्रीमान,
देश की प्रगति में मेरा है योगदान,
एक दिन भी थम जाऊँ तो रुक जाता है हिन्दुस्तान,
फिर भी मेरा कोई नहीं है मान,
ऊपर से ट्रॉफिक पुलिस करती है परेशान,
देशभक्ति, जनसेवा की लेते हैं शपथ,
हर जगह खड़ा रहता है उनका रथ,
दस दस रुपए में बिकता है ईमान
फिर भी मैं अपने ट्रक के पीछे लिखता हूँ श्रीमान,
मेरा भारत महान, मेरा भारत महान.

Wednesday, June 23, 2010

‘‘बाबा गांधी’’

अरे बाबा गांधी
ठीक जगह है तुम्हारी समाधि,
श्रद्धा से ना सही
कम से कम पुजते तो हो!

तुम्हारे सिद्धांत, आदर्श
सत्य और अहिंसा के उपदेश,
अच्छे हैं ,खूब बिकते हैं,
अरे अपने क्या, पड़ोसी भी आकर,
तुम्हारी समाधि पर सर झुकाते हैं,
वे अपने स्वार्थ के लिए,
ये अपने स्वार्थ के लिए,
खूब हिंसा करवाते हैं,

अच्छा है,
तुम चिर निद्रा में लीन हो,
फिर से जन्म मिले तो
इस देश में मत आना,

अब कोई नाथूराम नही भेदेगा तुम्हारा सीना,
तुम्हें पूजने वाले ही कर देंगे
तुम्हारा मुश्किल जीना,

तुम्हारे आदर्श,सिद्धांत,
सब धरे रह जाएंगे
और कुछ लोग तुम्हें
चारे के गठरे में बांध कर ले जाएंगे

एक से बढ़कर एक पड़े हैं,
जैसे थे वो टेलिफोन वाले सुखराम,
इस देश को ऐसे चूस रहे सब,
जैसे हो आम,

आज साबरमती से भी बड़ा है,
हर एक दल का धाम,
इनके ठाठबाट देखकर
आप हो जाएंगे परेशान
और आपके मुख से
बिना गोली के ही निकल जाएगा,
हे राम, हे राम, हे राम,

Friday, June 18, 2010

कविता-भोपाल के गैस पीड़ितों के लिए,

25 साल बाद भी "चर्चा" चालू है,
भोपाल के गैस पीड़ितों के लिए,
इंसाफ, दर्द, इंसानियत, इन सबकी कोई जगह नही है,
इंसानों की लाशों पर चल रही है,
राजनीति भोपाल में,
15000 ह्ज़ार की मौत,
लाखों परेशान अब भी,
भोपाल से दिल्ली तक,
अखबारों से मीडिया तक
सबके पास "चर्चा" का अच्छा मुद्दा हैं,
लोग परेशान है, अपने दुखों से,
वे जो 1 साल के थे तब, आज 25 के हैं,
वे जो 25 के थे तब ,आज 50 के हैं
और वे जो तब 50 के थे,
अब नहीं हैं,
वे गैस की वजह से,
इंसाफ के इंतज़ार में मरते रहे
ओर जो बचे हैं,
वे भी मर जाएंगे इंसाफ के इंतजार में,
मुझे पता है,कानून अंधा है,
उसकी आंखों पर बंधी है पट्टी
किसने बाँधी ,
कोई नही जानता,
15000 की मौतों का इंसाफ
25 साल में हो न सका,
लेकिन भोपाल जिंदा है आज भी,
मीडिया में
लोग, "चर्चा" कर रहे हैं,
15000 लाशों को इधर से उधर फेंक रहे हैं ,
गेंद की तरह
दिल्ली से भोपाल के बीच,
और मैं आज भी याद करता हूँ ,
मेरे पड़ोसी शफ़ी भाई की बीबी और बच्ची की मौत,
मेरी आंखों में आज भी दर्द है,
उन सबके लिए ,
और स्टेशन मास्टर शर्मा जी के लिए
जिनकी वजह से ह्ज़ारों जानें बची ................