Wednesday, January 12, 2022

कला और खेल

 कला और खेल"।          २४/१०/२०२१.


तुम हार गई वीणा वादनी

मां सरस्वती।

तुम हर गए योगेश्वर

और तुम्हारी बांसुरी

तुम हार गए नटराज शिव

तुम्हारा तांडव पखावज,

सब उदास थे उस दिन

जब अमन की आशा पर

राजनीति ने  फ़ेखा अपना जाल ,

और कर लिए  कैद

बे सात स्वर जो सबके थे

एक जैसे।

बिल्कुल पानी और हवा की तरह

पवित्र,  

पर दुर्भाग्य राजनीति और नफरत ने

खीच दी एक रेखा, खड़ी कर दी एक दीवाल।

तड़पते रहे साज़

साहित्य और संगीत का कोन कद्रदान,

बस समाधियों पर और स्वागत समारोह

तक बची तुम्हारी पहचान

कहां आ गया मेरा हिंदुस्तान।

तुम हार गई  मां सरस्वती

उस्ताद बस्मिल्लाह, पंडित रवि शंकर,

भीमसेन, जसराज,

शिव हरी, ज़ाकिर, टैगोर, अमृता,

मंटो,

जीत गया पैसा, और राजनीति

और नफरत,

है कला संस्कृति, संस्कार से भरे भारत

कितना अकेला है तू

जेसे खेल प्रेम दिखया 

बस उसी तरह सात स्वरो का मिलाप करा दे

राजनीति और नफरत की ये दीवार गिरा दे।

जिस तरह दोनों देश के खिलाड़ियों ने

प्रेम से हात मिलाए

अब दिल भी मिला दे।

राजनीति से नफरत मिटा दे।

मिले स्वर मेरा तुम्हारा

तो स्वर बने हमारा,


राकेश श्रीवास्तव पुणे

१४/१०/२०२१.

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