झूठ बोलना""। ३१/०३/२०२२.
Sunday, April 3, 2022
झूठ बोलना।
Tuesday, February 8, 2022
पत्थर""। ०७/०२/२०२२.
यार तुम भी अजीब हों,
तुम पत्थर हो।
कितने रंग कितने रूप हैं
तुम्हारे कितने स्वरूप हैं
कहीं छोटे कही मोटे
कहीं चट्टान हो।
गुफाओं में बुद्ध बन विराजमान हो।
सच अजीब हो,
कही तहजीब, कहीं सजदा।
कहीं मकान हो।
कहीं काली,कही दुर्गा,
कही राम बन, आदर्श
तो कहीं भक्त हनुमान हो।
शिव लिंग बन भोजपुर में
सच तुम आस्था और ध्यान हो
मेने ही तराशा है तुम्हे
अब तुम भगवान हो।
राकेश श्रीवास्तव पुणे
०७/०२/२०२२.
Monday, February 7, 2022
Lata
लता (वेल). ०६/०२/२०२२.
तुम स्वर की लता हो।
पतली सी वेल
सातो स्वरो सा रे गा मा पा धा नी
जो चढ़ गई है
भारत के गगन में
हिमालय की चोटी से कश्मीर
की वादियों तक।
चारो दिशाओं मे
कन्याकुमारी के छोर पर
गूंजती तुम्हारी स्वरीली आवाज।
सच तुम्हारे स्वर में ही
खो जाते सारे साज।
देश क्या पूरी दुनिया में
एक सुरीली आवाज़।
सुंगंध की बैल लता हो।
कितने रंग बिरंगे फूलों से
इन्द्रधनुष सा सजाया है।
मां सरस्वती खुद कंठ में विराजमान हो।
हैं स्वर लहरियां विखेरेने बाली
मां लता ।
तुमने प्रेम , विरह,
देश भक्ति, मां, बहन,
दुल्हन,
तुमने सबके लिए गाया हैं।
महल , आवारा, सौदागर,
प्रेम रोग, उत्सव,कितना कुछ याद हैं
मधुबाला, नर्गिश, शर्मीला से लेकर
माधुरी ,काजोल, करिश्मा,
सबको अपना स्वर दिया हे।
ऐ मेरे वतन के लोगो ,जरा याद करो कुर्बानी ,
ये अजर अमर गीत सुनकर
सबकी आंखे नम हो जाती हे
तुम लता हो। स्वरों से लदी एक वेल।
आज से तुम ब्रह्मलोक में अपने
स्वर सजाओगी।
जिसने तुमको भेजा था
अब उसको ही अपने गीत सुनाओगी
राकेश श्रीवास्तव पुणे।
Wednesday, January 12, 2022
कला और खेल
कला और खेल"। २४/१०/२०२१.
तुम हार गई वीणा वादनी
मां सरस्वती।
तुम हर गए योगेश्वर
और तुम्हारी बांसुरी
तुम हार गए नटराज शिव
तुम्हारा तांडव पखावज,
सब उदास थे उस दिन
जब अमन की आशा पर
राजनीति ने फ़ेखा अपना जाल ,
और कर लिए कैद
बे सात स्वर जो सबके थे
एक जैसे।
बिल्कुल पानी और हवा की तरह
पवित्र,
पर दुर्भाग्य राजनीति और नफरत ने
खीच दी एक रेखा, खड़ी कर दी एक दीवाल।
तड़पते रहे साज़
साहित्य और संगीत का कोन कद्रदान,
बस समाधियों पर और स्वागत समारोह
तक बची तुम्हारी पहचान
कहां आ गया मेरा हिंदुस्तान।
तुम हार गई मां सरस्वती
उस्ताद बस्मिल्लाह, पंडित रवि शंकर,
भीमसेन, जसराज,
शिव हरी, ज़ाकिर, टैगोर, अमृता,
मंटो,
जीत गया पैसा, और राजनीति
और नफरत,
है कला संस्कृति, संस्कार से भरे भारत
कितना अकेला है तू
जेसे खेल प्रेम दिखया
बस उसी तरह सात स्वरो का मिलाप करा दे
राजनीति और नफरत की ये दीवार गिरा दे।
जिस तरह दोनों देश के खिलाड़ियों ने
प्रेम से हात मिलाए
अब दिल भी मिला दे।
राजनीति से नफरत मिटा दे।
मिले स्वर मेरा तुम्हारा
तो स्वर बने हमारा,
राकेश श्रीवास्तव पुणे
१४/१०/२०२१.
कला और खेल"। २४/१०/२०२१.
तुम हार गई वीणा वादनी
मां सरस्वती।
तुम हर गए योगेश्वर
और तुम्हारी बांसुरी
तुम हार गए नटराज शिव
तुम्हारा तांडव पखावज,
सब उदास थे उस दिन
जब अमन की आशा पर
राजनीति ने फ़ेखा अपना जाल ,
और कर लिए कैद
बे सात स्वर जो सबके थे
एक जैसे।
बिल्कुल पानी और हवा की तरह
पवित्र,
पर दुर्भाग्य राजनीति और नफरत ने
खीच दी एक रेखा, खड़ी कर दी एक दीवाल।
तड़पते रहे साज़
साहित्य और संगीत का कोन कद्रदान,
बस समाधियों पर और स्वागत समारोह
तक बची तुम्हारी पहचान
कहां आ गया मेरा हिंदुस्तान।
तुम हार गई मां सरस्वती
उस्ताद बस्मिल्लाह, पंडित रवि शंकर,
भीमसेन, जसराज,
शिव हरी, ज़ाकिर, टैगोर, अमृता,
मंटो,
जीत गया पैसा, और राजनीति
और नफरत,
है कला संस्कृति, संस्कार से भरे भारत
कितना अकेला है तू
जेसे खेल प्रेम दिखया
बस उसी तरह सात स्वरो का मिलाप करा दे
राजनीति और नफरत की ये दीवार गिरा दे।
जिस तरह दोनों देश के खिलाड़ियों ने
प्रेम से हात मिलाए
अब दिल भी मिला दे।
राजनीति से नफरत मिटा दे।
मिले स्वर मेरा तुम्हारा
तो स्वर बने हमारा,
राकेश श्रीवास्तव पुणे
१४/१०/२०२१.
सिरोंज (ददियाल)
सिरोंज""। ११/०१/२०२२
Monday, January 10, 2022
पत्रकार
"पत्रकार"। ५/१/२०२२
उसके पास बो सब खबर है।
जो सरकार के पास नहीं।
पुलिस, सुरक्षा एजिंसीज।
के पास भी नहीं।
उसे पता है ये हत्या का प्लान हैं।
जांच शुरू नहीं, अदालत नहीं।
जज नहीं, गवाह नहीं।
उसने देश द्रोह का इल्ज़ाम
भी लगा दिया,और सजा भी सुना दी।
प्रबक्ता उसका अपना है
या ये प्रवक्ता का अपना हैं।
टी वी उन दोनो का हैं
नफरत, जहर, सनसनी।
उत्तेजना,फेलाना शुरू कर दिया है।
दंगा भड़काना उनका ।
संस्कार, संस्कृति, का हिस्सा है।
कुर्सी के लिए जवानों, पुलिस,
किसान, मजदूर, की हत्या।
उनका चरित्र है
आगजनी, लूटपाट,
उनकी स्पेशल ट्रेनिंग है।
पत्रकार उनके साथ है।
शराब है, शबाब हैं ,पैसा है,
कुत्ते बांधने का बैल्ट है,
स्टोरी पूरी सेट है।
किसकी आवाज़ दवानी है
किसकी सुनानी है
रिमोट उसके पास है।
पैनल है। प्रबक्ता है, एक्सपर्ट है।
सरकारी खजाना हैं,
जितना लुटाना है लुटाओ।
प्रजा का सवाल मत उठाओ।
बस ये धर्म ईमानदारी से निभाओ।
अदालत के फैसले से पहले
अपने फैसले सुनाओ।
इतनी नफरत भर दो।
बो किसी की मां बेटी की कीमत लगाए
नए नए ऐप बनाए।
वे रोज इतनी नफरत फेला रहें हैं।
धीरे धीरे देश जला रहे हैं।
सलाह,सुझाव,का एक शब्द नहीं बोलते
बे आग में घी झोकते।
सब पत्रकारिता का धर्म नही निभा रहे है
उनके प्रोग्राम दंगल, हुंकार, टक्कर,ताल ठोक के।
पूछता है भारत,
भारत को विकास की और नहीं।
विनाश की और ले जा रहे है।
जो भी सभ्यता, संस्कृति, प्रेम भाव बचा था
देश में ये उसे भी मिटा रहे है।
अदालत के फैसले से पहले
अपने फैसले सुना रहे।
ये देश को बचा नही रहे
ये देश जला रहे हैं।
ये सच्चे पत्रकार नहीं।
ये देश जला रहे है।।
राकेश श्रीवास्तव पुणे
५/१/२०२२
कितना अच्छा हो"। १०/०१/२०२२.
Monday, January 3, 2022
"विकास""। ३१/१२/२०२१.