Tuesday, November 2, 2010

इस बार दीवाली तो नेताओ ने मनाई.

काटून गूगल से साभार
इस बार दीवाली तो नेताओ ने मनाई.
सबने की जी भर के कमाई ,
किसी के हाथ खेल,
किसी ने कारगिल के शहीदो के हक पर की हाथ सफाई,
लाखों गरीबों के घर
जिन्हे नसीब नही रोशनाई,
इस बार दीवाली तो नेताओ न मनाई,
गरीब ने अपनी भूक के लिए एक रोटी चुराई
उसकी खूब हुई पिटाई,
नेताओ ने दोनो हाथो से लूट ली देश की इज्जत
फिर भी किसी ने उनकी कुर्सी नही हटाई।

Saturday, October 16, 2010

सच्चा रावण तो जिंदा रहता है मुस्कुराता है










पूरा देश मनाएगा दशहरा
कलयुगी राम रावण को मारने का,
बांधेंगे सेहरा,
हर साल सत्य, झूठ पर विजयी होता है,
पर रावण दहन पर उसको बनाने बाला बहुत रोता है,
अब पूरे एक वर्ष तक करना पड़ेगा इंतजार,
राम से ज्यादा उसे रावण से होता है प्यार,
रावण तो जलते जलते भी उसे कुछ दे जाता है,
उसी मजदूरी से ही तो वो कुछ दिन खाता है,
रावण दहन पर वो बहुत रोता है, बिलखता है, चिल्लाता है,
वो देखता है राम के भेष में चारो तरफ रावणों का बसेरा है,
बाँस, घाँस, कागज, के बेजान रावण को हम मानते है अभिशाप
अब फिर एक वर्ष जमा होंगे पाप,
झूठ मूठ का रावण तो हर वर्ष जल जाता है,
सच्चा रावण तो जिंदा रहता है मुस्कुराता है
काश इस धरती पर फिर से आ जाएँ, मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम,
और सच में मिटा दें इन रावणों का बसेरा,
तब ही मनाएगा मेरा देश दशहरा.

Sunday, October 10, 2010

केक्टस






जब तुम
पौधा केक्टस का लगाओगे ,
तो
जूही के फूलों की खुशबू
कहाँ से पाओगे,
वैसे भी तुमने
अपने जीवन को
केक्टस ही बना लिया है,
और
जूही के फूलों का गला
पता नहीं
क्यों कर दबा दिया है.

Saturday, September 4, 2010

शहर


एक दिन
हमने
शहर से पूछा,
क्या
तुम तुम्हारे
भीतर बसे
हर आदमी को जानते हो ?
शहर ने
हमपर
प्रतिप्रश्न छोड़ा
यहाँ
आदमी रहते कहाँ हैं
हमें भी तो बताओ........
                               

Saturday, August 28, 2010

"धर्म"







ना राम  चाहिए उन्हें, ना रहीम चाहिए,
ना धर्म चाहिए उन्हें, ना ईमान चाहिए,
कुर्सी के भूखे भेड़िये हैं वो,
उन्हें तो धर्म के नाम पर,
लोगों की जान चाहिये,
ना राम चाहिए उन्हें, ना रहीम चाहिए.......

Monday, August 16, 2010

इतिहास के गवाह

खजुराहो का मन्दिर

इतिहास के गवाह प्राचीन आभूषणों पर अपना नाम लिख दें,
मोहब्बत की संगमरमरी दीवारों को पान से रंग  दें,
और शिल्पकारों की कब्रों पर जाकर करें प्रश्न,
अरे तुमने क्या नक्काशी की
अजंता की गुफाओ में, खजुराहो के मंदिरों में,
कोणार्क से लेकर ताज़महल की दीवारों तक,
अरे उठो और कब्र से बाहर आओ,
और देखो
साक्षरता की निशानी,
मेरे देश के लोग कितना पढ़ गये हैं,
उनके लिए ये धरोहर जैसे सड़ गये हैं,
तुम्हारे ही शिल्प के ऊपर बना दिया है दिल
और खींच दिया है तीर का बाण,
और मन नहीं भरा तो लिख दिया अपनी प्रेमिका का नाम,
तुम्हारी कला का क्या दिया है दाम,
ये पढ़े लिखे लोग कितने अनपढ़ हो गये है,
देश की अनमोल धरोहर प्राचीन आभूषणों पर
अपने काले नाम लिख गये है,
कला और कलाकार का कितना
अपमान कर रहे हैं,
और हम, तुम, वो, ये,सरकार सब,
कितना सहन कर रहे है,
आओ हम सब जाग जाएँ,
और अपने देश की अनमोल धरोहर को बचाएँ.

Sunday, August 8, 2010

" हवन"

हवन ही हवन में हवन हो गये
सभ्यता से मिले संस्कार ,
पता नही उनके कैसे गबन हो गये !
धर्म, एकता, अखण्डता, और शांति
बस बचे नाम के,
इनके अर्थ तो लगता है,
जैसे दफ़न हो गये,
इंसानों के बीच, इंसानियत से ही थी उम्मीद,
पर आज तो इंसान ही इंसान के क़फन हो गये,
हवन ही हवन में हवन हो गये,

Saturday, July 24, 2010

बिग बुल और बरगद के पेड की जड़ों का रहस्य










 हमारे एक मित्र ने पूछा,
यार ये बिग बुल, बिग बुल क्या था ?
हमने कहा यार
ये बिग बुल, बिग बुल ,बहुत बिग था,
बरगद के पेड़ की तरह
जिसकी कुछ जड़ें
नीचे से ऊपर की तरफ जाती थी,
कुछ जड़ें
ऊपर से नीचे की तरफ आती थी ,
कौन सी जड़ किससे मिली थी
इसी खोज मे,
सी बी आई बहुत दिनों तक पड़ी थी ,
जड़ें आपस में इतनी मिली थी ,
उन्हें कोई निकाल नहीं पाया,
बिग बुल का सच क्या था,
कोई जान नहीं पाया
बरगद का पेड़ 63 साल का जवान है,
और दिल्ली में मजबूती से विराजमान है,
सी.बी.आई तो क्या कोलम्बस भी नहीं खोज पाएगा,
बिग बुल बरगद की जड़े इतनी धुमावदार हैं
खोजने वाला धूम धूम कर मर जाएगा
बिग बुल और बरगद के पेड की जड़ों का रहस्य
कोई नही जान पाएगा।

Thursday, July 15, 2010

हम मदारियों के देश में रहते हैं.........


हाँ, हम मदारियों के देश में रहते हैं.
रोज मदारी आता है डुगडुगी बजाता है,
गरीबी दूर करने के ताबीज बेचता है,
कितनी कसमें खाता, कितनी खिलाता है।

खेल दिखाते-दिखाते जादू की छड़ी घुमाएगा,
देखो, आदमियों का पूरा भीड़ ताली बजायेगा
हाँ भाईजान, हाँ कदरदान, देखो श्रीमान,
उसको जादू वाली राजनीति का पूरा खेल आता है,
कभी किसी को गिराता है,
कभी किसी को मिलाता है,
मदारी हवा का रुख पहचानता है,
हर एक की नब्ज जानता है,
देखो जादू से हाथ के पंजे को घड़ी बनाएगा,
हल में से कमल खिलाएगा है,
कमल से हल का पहिया बनाएगा,
तीर कमान बना सबको डराएगा,
साइकिल को हाथी, हाथी को लालटेन,
वह कुछ भी बना सकता है।

वो नया खेल बना रहा है
किसान दशक ला रहा है,
लाल किले पर खड़ा होकर तमाशा दिखाएगा,
देखो एक हाथ में आरक्षण का गोला है
दूसरे हाथ में मंडल आयोग का चोला है,
दोनों को हिला दिया,
देखो मिला दिया,
अब जादू का डंडा घुमाएगा,
और यही से बैठे बैठे देश के कोने कोने में हिंसा करवाएगा ,
देखो आरक्षण का ऐसा मंतर मारेगा
राजीव गोस्वामी जिन्दा भस्म हो जाएगा।

पॉच सौ से भी ज़्यादा उसका परिवार है,
नए-नए खेल उसके पास हैं,
खाप, तेलंगाना, बेलगॉव, काश्मीर,
अयोध्या, भाषा, प्रांत और नक्सलवाद,
नए नए खेलों की भरमार है,
देखों कृष्णा से रथ यात्रा करवाएगा
और एक ही मंतर से किसी की धरोहर गिराएगा,
देखो भाई से भाई को लड़वाएगा,
उसके नए खेल दन्तेवाड़ा में,
कोई भी ज़िन्दा पुलिसवाला एक क्षण में शहीद हो जाएगा।

सच अपने देश में मदारियों का झमेला है
हर पॉच साल में बदल जाता है, नया आता है,
डुग-डुगी की आवाज़ से जनता को नचाता है,
गरीबी दूर करने के  बेचता है ताबीज,
कितनी कसमें खाता, कितनी खिलाता है।

Saturday, July 3, 2010

पीढ़ी बिगड़ गई


देखो हमारा वंश कितना आगे बढ़ गया,
देखते ही देखते चाँद पर चढ़ गया,
और हम अब तक पेड़ों पर कुलाटी मार रहे हैं ?
चलो हम भी कुछ दिखाए ................!

एक नौजवान बंदर बोला,
यार हम क्या कर पाएंगे............?
दूसरे बूढ़े बंदर ने राज खोला.........,
तुम्हें नही मालूम,
हमने ही बनाया था सागर पर सेतू
और गये थे उस पार,
चलो अब पत्थर पर पत्थर रखकर एक सीढ़ी बनाएँ,
चाँद तक जाए, देखकर आए,
हमारा वंश क्या कर रहा है,

तीसरा एक बंदर भोला
बड़े बूढ़ों के बीच में बोला........,
चांद पर अपन बाद में जाएंगे,
चलो कुछ दिन देश चलाएंगे,

एक सीनियर बंदर बोला, नादान..........,
देश चलाना नही है आसान,
मैं देख कर आया हूँ,
देश चलाने वाला भवन महान,
अरे देश चलाना है तो,
पहले सारे बंदरों को ,
जात-पात, और धर्म-प्रांत के नाम पर लड़ना पड़ेगा,
बोलो सबसे पहले कौन मरेगा ?
भाई से कौन भाई लड़ेगा ?
राम के आदर्श को छोड़ना होगा,
झूठ, फरेब, बेईमानी का देना होगा साथ
धार्मिक स्थानों पर मचाना होगा उत्पात,
बोलो ! क्या ये सब कर पाओगे ?
तभी देश चला पाओगे,

सब बंदरों की बातें सुन,
एक बूढ़ी बंदरिया की आँखें भर आई,
उसने अपने कुनबे पर एक नज़र घुमाई
बोली, क्या हमारा वंश यही सब कर रहा है ?
अपने समाज की सोचना छोड़ आपस में कट मर रहा है!
वो घबराई सी बोली नहीं नहीं,
हमें चाँद पर हरगिज़ नहीं जाना है,
ना यह देश चलाना है,
बस अपने प्यारे जंगल में,
शांति, एकता, और भाइचारे से रहते जाना है।

Sunday, June 27, 2010

मेरा भारत महान







आज इस देश को सब से ज़्यादा कौन देता है मान,
एक ट्रक ड्राइवर बोला, मैं श्रीमान,
कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक,
देश के हर कोने में पहुँचाता हूँ सामान,
गर्मी हो या सर्दी, या बरसाती तूफान,
मैं रुकता नहीं हूँ श्रीमान,
देश की प्रगति में मेरा है योगदान,
एक दिन भी थम जाऊँ तो रुक जाता है हिन्दुस्तान,
फिर भी मेरा कोई नहीं है मान,
ऊपर से ट्रॉफिक पुलिस करती है परेशान,
देशभक्ति, जनसेवा की लेते हैं शपथ,
हर जगह खड़ा रहता है उनका रथ,
दस दस रुपए में बिकता है ईमान
फिर भी मैं अपने ट्रक के पीछे लिखता हूँ श्रीमान,
मेरा भारत महान, मेरा भारत महान.

Wednesday, June 23, 2010

‘‘बाबा गांधी’’

अरे बाबा गांधी
ठीक जगह है तुम्हारी समाधि,
श्रद्धा से ना सही
कम से कम पुजते तो हो!

तुम्हारे सिद्धांत, आदर्श
सत्य और अहिंसा के उपदेश,
अच्छे हैं ,खूब बिकते हैं,
अरे अपने क्या, पड़ोसी भी आकर,
तुम्हारी समाधि पर सर झुकाते हैं,
वे अपने स्वार्थ के लिए,
ये अपने स्वार्थ के लिए,
खूब हिंसा करवाते हैं,

अच्छा है,
तुम चिर निद्रा में लीन हो,
फिर से जन्म मिले तो
इस देश में मत आना,

अब कोई नाथूराम नही भेदेगा तुम्हारा सीना,
तुम्हें पूजने वाले ही कर देंगे
तुम्हारा मुश्किल जीना,

तुम्हारे आदर्श,सिद्धांत,
सब धरे रह जाएंगे
और कुछ लोग तुम्हें
चारे के गठरे में बांध कर ले जाएंगे

एक से बढ़कर एक पड़े हैं,
जैसे थे वो टेलिफोन वाले सुखराम,
इस देश को ऐसे चूस रहे सब,
जैसे हो आम,

आज साबरमती से भी बड़ा है,
हर एक दल का धाम,
इनके ठाठबाट देखकर
आप हो जाएंगे परेशान
और आपके मुख से
बिना गोली के ही निकल जाएगा,
हे राम, हे राम, हे राम,

Friday, June 18, 2010

कविता-भोपाल के गैस पीड़ितों के लिए,

25 साल बाद भी "चर्चा" चालू है,
भोपाल के गैस पीड़ितों के लिए,
इंसाफ, दर्द, इंसानियत, इन सबकी कोई जगह नही है,
इंसानों की लाशों पर चल रही है,
राजनीति भोपाल में,
15000 ह्ज़ार की मौत,
लाखों परेशान अब भी,
भोपाल से दिल्ली तक,
अखबारों से मीडिया तक
सबके पास "चर्चा" का अच्छा मुद्दा हैं,
लोग परेशान है, अपने दुखों से,
वे जो 1 साल के थे तब, आज 25 के हैं,
वे जो 25 के थे तब ,आज 50 के हैं
और वे जो तब 50 के थे,
अब नहीं हैं,
वे गैस की वजह से,
इंसाफ के इंतज़ार में मरते रहे
ओर जो बचे हैं,
वे भी मर जाएंगे इंसाफ के इंतजार में,
मुझे पता है,कानून अंधा है,
उसकी आंखों पर बंधी है पट्टी
किसने बाँधी ,
कोई नही जानता,
15000 की मौतों का इंसाफ
25 साल में हो न सका,
लेकिन भोपाल जिंदा है आज भी,
मीडिया में
लोग, "चर्चा" कर रहे हैं,
15000 लाशों को इधर से उधर फेंक रहे हैं ,
गेंद की तरह
दिल्ली से भोपाल के बीच,
और मैं आज भी याद करता हूँ ,
मेरे पड़ोसी शफ़ी भाई की बीबी और बच्ची की मौत,
मेरी आंखों में आज भी दर्द है,
उन सबके लिए ,
और स्टेशन मास्टर शर्मा जी के लिए
जिनकी वजह से ह्ज़ारों जानें बची ................