Sunday, April 3, 2022

झूठ बोलना।

 झूठ बोलना""।     ३१/०३/२०२२.

झूठ बोलना आसान नहीं
इस कला में माहिर होने के लिए।
सगे मां बाप का आशीर्वाद।
अपने पूर्वजों के संस्कार।
सभ्यता, संस्कृति और सच्चा धार्मिक
होना जरूरी है।
सत्य बोलने की राजनीति में
कभी कभी हम सभी की
मजबूरी है।
सत्य ना हमे बोलना चाहिए
न सुनना,और ना देखना चाहिए
राजनीति की बुनियाद झूठ पर
ही टिकी हे।
सत्य के खंबे कांप रहे है।
कब इमारत गिरेगी पता नही।
इसलिए सत्य से दूर रहो
और अपने बाल बच्चे पालो 
और खुश रहो, ऐश करो।
देश, समाज,गरीब,किसान,जवान, मजदूर।
डॉक्टर केरोना योद्धा, 
पुलिस अधिकारी।
जब तक जरूरत,तब तक पैर धो कर पियो।
झूठ का साथ दो तो वफादार 
वरना जेल जाने को रहो तैयार।
झूठ बोलो और खुश रहो।
और खुश रखो।
जियो और जीने दो।
जय जवान जय किसान।
कैरोना योद्धा।
इन सबको नारो में जिंदा रहने दो।।


राकेश श्रीवास्तव पुणे।
३१/०३/२०२२.




Tuesday, February 8, 2022

 पत्थर""।        ०७/०२/२०२२.

यार तुम भी अजीब हों,

तुम पत्थर हो।

कितने रंग कितने रूप हैं

तुम्हारे कितने स्वरूप हैं

कहीं छोटे कही मोटे

कहीं चट्टान हो।

गुफाओं में बुद्ध बन विराजमान हो।

सच अजीब हो,

कही तहजीब, कहीं सजदा।

कहीं मकान हो।

कहीं काली,कही दुर्गा,

कही राम बन, आदर्श 

तो कहीं भक्त हनुमान हो।

शिव लिंग बन भोजपुर में

सच तुम आस्था और ध्यान हो

मेने ही तराशा है तुम्हे

अब तुम भगवान हो।


राकेश श्रीवास्तव पुणे

०७/०२/२०२२.

Monday, February 7, 2022

Lata

 लता  (वेल).  ०६/०२/२०२२.


तुम स्वर की लता हो।

पतली सी वेल

सातो स्वरो सा रे गा मा पा धा नी 

जो चढ़ गई है 

भारत के गगन में

हिमालय  की चोटी से कश्मीर 

की वादियों तक।

चारो दिशाओं मे

कन्याकुमारी के छोर पर

गूंजती तुम्हारी स्वरीली आवाज।

सच तुम्हारे स्वर में ही 

खो जाते सारे साज।

देश क्या पूरी दुनिया में

एक सुरीली आवाज़।

सुंगंध की बैल लता हो।

कितने रंग बिरंगे फूलों से

इन्द्रधनुष सा सजाया है।

मां सरस्वती खुद कंठ में विराजमान हो।

हैं स्वर लहरियां विखेरेने बाली

मां लता ।

तुमने प्रेम , विरह,

देश भक्ति, मां, बहन,

दुल्हन,

तुमने सबके लिए गाया हैं।

महल , आवारा, सौदागर,

प्रेम रोग, उत्सव,कितना कुछ याद हैं

मधुबाला, नर्गिश, शर्मीला से लेकर

माधुरी ,काजोल, करिश्मा,

सबको अपना स्वर दिया हे।

ऐ मेरे वतन के लोगो ,जरा याद करो कुर्बानी ,

ये अजर अमर गीत सुनकर

सबकी आंखे नम हो जाती हे

तुम लता हो। स्वरों से लदी एक वेल।

आज से तुम ब्रह्मलोक में अपने

स्वर सजाओगी।

जिसने तुमको भेजा था

अब उसको ही अपने गीत सुनाओगी


राकेश श्रीवास्तव पुणे।

Wednesday, January 12, 2022

कला और खेल

 कला और खेल"।          २४/१०/२०२१.


तुम हार गई वीणा वादनी

मां सरस्वती।

तुम हर गए योगेश्वर

और तुम्हारी बांसुरी

तुम हार गए नटराज शिव

तुम्हारा तांडव पखावज,

सब उदास थे उस दिन

जब अमन की आशा पर

राजनीति ने  फ़ेखा अपना जाल ,

और कर लिए  कैद

बे सात स्वर जो सबके थे

एक जैसे।

बिल्कुल पानी और हवा की तरह

पवित्र,  

पर दुर्भाग्य राजनीति और नफरत ने

खीच दी एक रेखा, खड़ी कर दी एक दीवाल।

तड़पते रहे साज़

साहित्य और संगीत का कोन कद्रदान,

बस समाधियों पर और स्वागत समारोह

तक बची तुम्हारी पहचान

कहां आ गया मेरा हिंदुस्तान।

तुम हार गई  मां सरस्वती

उस्ताद बस्मिल्लाह, पंडित रवि शंकर,

भीमसेन, जसराज,

शिव हरी, ज़ाकिर, टैगोर, अमृता,

मंटो,

जीत गया पैसा, और राजनीति

और नफरत,

है कला संस्कृति, संस्कार से भरे भारत

कितना अकेला है तू

जेसे खेल प्रेम दिखया 

बस उसी तरह सात स्वरो का मिलाप करा दे

राजनीति और नफरत की ये दीवार गिरा दे।

जिस तरह दोनों देश के खिलाड़ियों ने

प्रेम से हात मिलाए

अब दिल भी मिला दे।

राजनीति से नफरत मिटा दे।

मिले स्वर मेरा तुम्हारा

तो स्वर बने हमारा,


राकेश श्रीवास्तव पुणे

१४/१०/२०२१.

 कला और खेल"।          २४/१०/२०२१.


तुम हार गई वीणा वादनी

मां सरस्वती।

तुम हर गए योगेश्वर

और तुम्हारी बांसुरी

तुम हार गए नटराज शिव

तुम्हारा तांडव पखावज,

सब उदास थे उस दिन

जब अमन की आशा पर

राजनीति ने  फ़ेखा अपना जाल ,

और कर लिए  कैद

बे सात स्वर जो सबके थे

एक जैसे।

बिल्कुल पानी और हवा की तरह

पवित्र,  

पर दुर्भाग्य राजनीति और नफरत ने

खीच दी एक रेखा, खड़ी कर दी एक दीवाल।

तड़पते रहे साज़

साहित्य और संगीत का कोन कद्रदान,

बस समाधियों पर और स्वागत समारोह

तक बची तुम्हारी पहचान

कहां आ गया मेरा हिंदुस्तान।

तुम हार गई  मां सरस्वती

उस्ताद बस्मिल्लाह, पंडित रवि शंकर,

भीमसेन, जसराज,

शिव हरी, ज़ाकिर, टैगोर, अमृता,

मंटो,

जीत गया पैसा, और राजनीति

और नफरत,

है कला संस्कृति, संस्कार से भरे भारत

कितना अकेला है तू

जेसे खेल प्रेम दिखया 

बस उसी तरह सात स्वरो का मिलाप करा दे

राजनीति और नफरत की ये दीवार गिरा दे।

जिस तरह दोनों देश के खिलाड़ियों ने

प्रेम से हात मिलाए

अब दिल भी मिला दे।

राजनीति से नफरत मिटा दे।

मिले स्वर मेरा तुम्हारा

तो स्वर बने हमारा,


राकेश श्रीवास्तव पुणे

१४/१०/२०२१.

सिरोंज (ददियाल)

 सिरोंज""। ११/०१/२०२२



मेरा गांव, मेरा ददियाल, मेरा बचपन।
हत्तियापोर सिरोंज।
सब याद है
बड़े बड़े दरवाजे,आंगन, चौबारे,
गाय कि गोशाला,
अपनी आटा चक्की कि टूक टूक।
बड़ा सा इंजन,पानी का बड़ा होज।
५ पैसे किलो पिसाई
आटा देते वक्त थोड़ी कटाई
पीर बाबा का कमरा,
ऊंची छत पर मुंडेर।
पतंग की लड़ाई,
मांजे की लुटाई।
बच्चू चाचा के हाथ की पिटाई
सब याद है।
चांद खां के पतंग के पेज
भार्गव की पेज लड़ाई।
मौला जी का पहाड़
हाथी पाव का घाट।
नीलकंठेस्वर का झरना।
काजी घाट पर पैजामे
 में हवा भर तैरना।
सब याद है।
मदन मोहन का मंदिर
भूतेश्वर पथ।
दर्जियों के मंदिर की आरती
चिरोंजी का प्रसाद
सब है याद
हबीबिया स्कूल
कितनी बार होम वर्क की भूल।
सलीम साहब की छड़ी से पिटाई।
१५ अगस्त,२६ जनवरी पर
प्रभात फेरी। लड्डू के पैकेट
दशहरा दिवाली कि धूम
नत्था पटेल के पड़ो की लड़ाई
बड़ा तालाब,चुंगी नाका
बड़ा बाजार  ,छोटा बाजार
रमेश लखपति की दुकान।
नेमा जी के दही बड़े
राम मंदिर का अखाड़ा
गंगा पहलवान उनकी
चाय की दुकान
तुलसी और रामेश्वर  का
फ्री स्टाइल  दंगल।
महावीर जयंती पर
गीत और मंगल।
संगीत मय जुलूस
कितना कुछ था 
भुजारिया के गीत
प्रेम भाई चारे की रीत
घर के पीछे रोज शाम को
 लगता सब्जी का बाजार
खूब खाते लाल लाल टमाटर।
घर पर पहेली बार बिजली  की रोशनाई
दादी के चेहरे पर भी हंसी आई
दादा को पैरालाइज का अटैक
चारो चचाओ ने सेवा की अनेक
अन्न, गाय,का दान
 हत्तियापोर में सबको मिलता सम्मान
खारे पानी का कुआं
उस पर लगती सभी सफाई कर्मचारी 
की हाजरी।
मोहरसिंह की नानी
पिलाती थी मीठा पानी।
सब कितना कुछ याद हैं
बचपन जहां बीता
उस मिट्टी की अलग ही बात है।
सिरोंज खूब याद हैं।
कितना कुछ बदला
कितना कुछ बना
कितने अपने बिछड़े।
यही संसार हैं
सिरोंज खूब याद है।

राकेश श्रीवास्तव पुणे।
११/०१/२०२२,










Monday, January 10, 2022

पत्रकार

 "पत्रकार"।         ५/१/२०२२


उसके पास बो सब खबर है।

जो सरकार के पास नहीं।

पुलिस, सुरक्षा एजिंसीज।

के पास भी नहीं।

उसे पता है ये हत्या का प्लान हैं।

जांच शुरू नहीं, अदालत नहीं।

जज नहीं, गवाह नहीं।

उसने देश द्रोह का इल्ज़ाम 

भी लगा दिया,और सजा भी सुना दी।

प्रबक्ता उसका अपना है

या ये प्रवक्ता का अपना हैं।

टी वी उन दोनो का हैं

नफरत, जहर, सनसनी।

उत्तेजना,फेलाना शुरू कर दिया है।

दंगा  भड़काना उनका ।

संस्कार, संस्कृति, का हिस्सा है।

कुर्सी के लिए जवानों, पुलिस,

किसान, मजदूर, की हत्या।

उनका चरित्र है

आगजनी, लूटपाट,

उनकी स्पेशल ट्रेनिंग है।

पत्रकार उनके साथ है।

शराब है, शबाब हैं ,पैसा है,

कुत्ते  बांधने का बैल्ट है,

स्टोरी पूरी सेट है।

किसकी आवाज़ दवानी है

किसकी सुनानी है

 रिमोट उसके पास है।

पैनल है। प्रबक्ता है, एक्सपर्ट है।

सरकारी खजाना हैं,

जितना लुटाना है लुटाओ।

प्रजा का सवाल मत उठाओ।

बस ये धर्म ईमानदारी से निभाओ।

अदालत के फैसले से पहले

अपने फैसले सुनाओ।

इतनी नफरत भर दो।

बो किसी की मां बेटी की कीमत लगाए

नए नए ऐप बनाए।

वे रोज इतनी नफरत फेला रहें हैं।

धीरे धीरे देश जला रहे हैं।

सलाह,सुझाव,का एक शब्द नहीं बोलते

बे आग में घी झोकते।

सब पत्रकारिता का धर्म नही निभा रहे है

उनके प्रोग्राम  दंगल, हुंकार, टक्कर,ताल ठोक के।

पूछता है भारत,

 भारत को विकास की और नहीं।

विनाश की और ले जा रहे है।

जो भी सभ्यता, संस्कृति, प्रेम  भाव बचा था

देश में ये उसे भी मिटा रहे है।

अदालत के फैसले से पहले

अपने फैसले सुना रहे।

ये देश को बचा नही रहे

ये देश जला रहे हैं।

ये सच्चे पत्रकार नहीं।

ये देश जला रहे है।।



राकेश श्रीवास्तव पुणे

५/१/२०२२

 कितना अच्छा हो"।        १०/०१/२०२२.

हम फिर से बन मानुष काल में ही
जीवन जिए। गुफाओं में
पत्तो के वस्त्र, पत्थर के शस्त्र
अधनंगे,बड़े बड़े बाल
मूंह से टपकती लार।
हड्डियों की माला
किसी किसी के पास हो
मृग छाला।
बस बो ही अकेला  कबीले का सरदार हों।
ना कोई जात, ना कोई प्रांत
ना कोई हिंदू हो या मुसलमान
एक साथ करते हो शिकार
मिल बांट कर खाते हो मांस।
प्रकृति प्रदूषण मुक्त सांस।
ना चुनाव,ना झूठ,ना पाप
ना हत्या,ना बलात्कार।
 ना नफरत,ना दंगे,
मिलजुल कर रहते  सब जंगल में
भले चंगे।
बेकार में धीरे धीरे बने मनुष्य
ना  ये खुश, ना बो खुश,
हम छाल से ,रेशम और मलमल  तक
आ गए। हम सब  कितने घमंडी हो गए
अपना बन मानुष काल ही भूल गए।
अपने पुरखो की धूल, मिट्टी, छाल, 
गुफाओं की जीवन यात्रा के पड़ाव
मिल बांट खाते रहे मांस
अब हम सूट टाई , खादी।
हरे, भगवा,नीले, पीले, रंगो में  बंट गए
अपनी अपनी पहचान बना ली।
अब कबीलो में अनगिनत सरदार 
गुफाओं में जो रहते थे साथ साथ।
कोई पेड़ या कोई जानवर होता
हमारी  आस्था और विश्वास।
पर आज सब  हो गया बेकार ,
चमचमाते  पंडाल, देख बन मानुष
हो गया अंधा।
अपने अपने कबीले , अपने अपने रंग,
अपने अपने ,आदर्श,संस्कार,कर्म, चिन्ह,
सबका अपना अपना धंधा,
बह बन मानुष अब हो गया पूरा नंगा,


राकेश श्रीवास्तव पुणे

१०/०१/२०२२.














Monday, January 3, 2022

 "विकास""।          ३१/१२/२०२१.


हमने  विकास  तो किया हैं
बड़े बड़े बांध बनाकर।
पोखरण से अंतरिक्ष तक
सफर किया हैं।
विज्ञान, तकनीकी, संचार,
कर लो दुनिया मुट्ठी में
रचा नया इतिहास।
अपनी गाड़िया,अपना बाजार,
स्वदेशी वस्तु का अंबार
हीरो,बजाज, युवाओं का  हमसफर
हैं आज।
देश की धड़कन हमारा बजाज।
बस एक विकास गलत हो रहा है।
नफरत का।जो जला देगा 
हमारी एकता, अखंडता,
कुछ लोग मजे करेंगे
बस घर गरीबों के ही जलंगे।
रोकना होगा नफरत का विकास।
नही तो निकलेगी हर घर से लाश।
इस चिंगारी को बुझाना होगा
सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान को
बचाना होगा।
वर्ना हमे पछताना होगा,
सब हो जायेगा तार तार
एक दूसरे के प्रति प्यार।
कहां मिलेंगे यार।
सांझे चूल्हे,आंगन, चोपाल,
विरासत और सौगात।
पुरखो ने बनाया ये सब
ना दिन देखा न रात।
आओ हम विकास करे,
एक दूसरे से प्यार करे।
जहर उगलने वाले,
जहर उगलते रहें
नफरत फैलाने वाले 
नफरत करते रहें
मानवता से इंसानियत से।
 बस तुम जागते रहना।
गंगा जमुना तहजीव को
बस मानते रहना।
अपने अपने पड़ोसी का।
बस हाथ थांबे रहना।
विश्वास न टूटने पाए।
भारत और आगे बड़ेगा
विकास , भाईचारे, प्रेम के 
नए इतिहास लिखेगा।
हमने विकास तो किया हैं
अभी और करना हैं।
नफरत के बोलो से बाहर निकल कर आए
सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान बनाए।

राकेश श्रीवास्तव पुणे