Wednesday, January 12, 2022

सिरोंज (ददियाल)

 सिरोंज""। ११/०१/२०२२



मेरा गांव, मेरा ददियाल, मेरा बचपन।
हत्तियापोर सिरोंज।
सब याद है
बड़े बड़े दरवाजे,आंगन, चौबारे,
गाय कि गोशाला,
अपनी आटा चक्की कि टूक टूक।
बड़ा सा इंजन,पानी का बड़ा होज।
५ पैसे किलो पिसाई
आटा देते वक्त थोड़ी कटाई
पीर बाबा का कमरा,
ऊंची छत पर मुंडेर।
पतंग की लड़ाई,
मांजे की लुटाई।
बच्चू चाचा के हाथ की पिटाई
सब याद है।
चांद खां के पतंग के पेज
भार्गव की पेज लड़ाई।
मौला जी का पहाड़
हाथी पाव का घाट।
नीलकंठेस्वर का झरना।
काजी घाट पर पैजामे
 में हवा भर तैरना।
सब याद है।
मदन मोहन का मंदिर
भूतेश्वर पथ।
दर्जियों के मंदिर की आरती
चिरोंजी का प्रसाद
सब है याद
हबीबिया स्कूल
कितनी बार होम वर्क की भूल।
सलीम साहब की छड़ी से पिटाई।
१५ अगस्त,२६ जनवरी पर
प्रभात फेरी। लड्डू के पैकेट
दशहरा दिवाली कि धूम
नत्था पटेल के पड़ो की लड़ाई
बड़ा तालाब,चुंगी नाका
बड़ा बाजार  ,छोटा बाजार
रमेश लखपति की दुकान।
नेमा जी के दही बड़े
राम मंदिर का अखाड़ा
गंगा पहलवान उनकी
चाय की दुकान
तुलसी और रामेश्वर  का
फ्री स्टाइल  दंगल।
महावीर जयंती पर
गीत और मंगल।
संगीत मय जुलूस
कितना कुछ था 
भुजारिया के गीत
प्रेम भाई चारे की रीत
घर के पीछे रोज शाम को
 लगता सब्जी का बाजार
खूब खाते लाल लाल टमाटर।
घर पर पहेली बार बिजली  की रोशनाई
दादी के चेहरे पर भी हंसी आई
दादा को पैरालाइज का अटैक
चारो चचाओ ने सेवा की अनेक
अन्न, गाय,का दान
 हत्तियापोर में सबको मिलता सम्मान
खारे पानी का कुआं
उस पर लगती सभी सफाई कर्मचारी 
की हाजरी।
मोहरसिंह की नानी
पिलाती थी मीठा पानी।
सब कितना कुछ याद हैं
बचपन जहां बीता
उस मिट्टी की अलग ही बात है।
सिरोंज खूब याद हैं।
कितना कुछ बदला
कितना कुछ बना
कितने अपने बिछड़े।
यही संसार हैं
सिरोंज खूब याद है।

राकेश श्रीवास्तव पुणे।
११/०१/२०२२,










1 comment:

  1. सुंदर रचना, बचपन कि याद,अपनी मिट्टी से।

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